कजरी गीत मल्हारें सावन।
कहाँ गए वे दिन मनभावन।।
काले भूरे बादल आते।
गरज-गरजकर नभ में छाते।।
बिजली कौंधे कड़कड़ कड़ कड़।
करते मेघ शोर गड़ गड़गड़।।
बरसें बूँदें शीतल पावन।
कहाँ गए वे ....
कौंध देख विरहिन तड़पाए।
याद पिया की रह-रह आए।।
दिवस न चैन रात नहिं निंदिया।
झर -झर झरे धुले तिय बिंदिया।।
काजल बहे गुलाबी गालन।
कहाँ गए वे....
सखी सहेली मिलजुल आतीं।
कजरी मधुर मल्हारें गातीं।।
पिय की बात बता शर्मातीं।
कहे बिना भी नहिं रह पातीं।।
पड़े हिंडोले बागन - बागन।
कहाँ गए वे ....
साड़ी -चुनरी लिपटे तन से।
लगी लाज चली विनत नयन से।।
पूछें अम्मा - बापू हमसे।
क्यों भीगीं यों देह वसन से।।
क्या कहें देखे जो साजन।
कहाँ गए वे....
टपका करतीं टप- टप छतियाँ।
खींचीं रात-रातभर खटियाँ।।
कर -कर बातें काटीं रतियाँ।
गाय न सोई सोती कुतिया।
छर छर छिड़के छप्पर छाजन।
कहाँ गए वे....
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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