मंगलवार, 10 अगस्त 2021

अँगुली की चमकार 👈 [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अँगुली की महिमा बड़ी,लोग कर रहे रोज़।

बेमतलब के शौक की,'शुभम'करेगा खोज।।


तनिक न पर-तन को छुए,कर देती चमकार।

मौन शब्द वाणी बिना, ये अँगुली  लाचार।।


सदा  दूसरी   ओर  ही, करती बद -  संकेत।

छेद  ढूँढ़ने  में  कुशल, अँगुली बनती  हेत।।


कभी  राह  अच्छी  बता, देती शुभ   निर्देश।

करती  है  गुमराह भी,अँगुली बदले    वेश।।


नाक रगड़वाती कभी,कभी पकड़ती कान।

अँगुली  घुस पर - पेट में,ले भी लेती जान।।


नोंच - खरोंचे  देह  को, भरवा देती   आह।

खोटी  कर  की  तर्जनी, की अद्भुत है चाह।।


उचका  देने  में कुशल, अँगुली है  हथियार।

सावधान रहना सदा,है शुभ-अशुभ विकार।।


दृष्टि  सदा  रख  सामने,मुड़े न अपनी  ओर।

पर  निंदा  में मगन है, अँगुली सबकी चोर।।


नहीं  गरेबाँ  झाँकती,  अँगुली अपना  एक।

छिद्र  फाड़ चौड़ा करे,फिर भी प्यारी नेक।।


तव सम्मुख जो अँगुलियाँ,उठें एक  भी बार।

उन्हें तोड़ने का रखें,साहस बिना    विचार।।


सावधान  रहना सदा, अँगुली है  बदकार।

'शुभम' बेधती और को,ठनवा देती   रार।।


पटल कुंजिका पर करे,अँगुली नित्य कमाल।

रचना को जीवित करे,करती नित्य धमाल।।


बिना  तर्जनी   हाथ  में, नहीं लेखनी   साथ।

गहती  अपने   अंक में, दिखलाती  है पाथ।।


सकल जगत गुणदोषमय,अँगुली उनमें एक।

बुरे भले  सब कर्म में,करती काम   अनेक।।


'शुभम' बिना टेढ़ी किए,घी आए  कब हाथ।

सदा  सहायक  तर्जनी, देती सबका  साथ।।


🪴 शुभमस्तु !

१०.०८.२०२१◆२.००आरोहणम मार्तण्डस्य।


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