सोमवार, 9 अगस्त 2021

राष्ट्र - आराधना 🇮🇳 [ गीत ]

  

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

 छंद :सरसी 

छंद विधान:१.चौपाई +दोहे के सम चरण का योग।

२.मात्राभार :   16+11=27

३.द्विकल +त्रिकल+त्रिकल वर्जित 

४अंत में गुरु/वाचिक अनिवार्य।

५.दोहे के सम चरण के अंत में  गुरु लघु(21)

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

लहराता    है    केतु    तिरंगा,

भारत      की      है      शान।

करती नमन नित्य तव संतति,

मेरा         देश          महान।।

मस्तक ऊँचा  किए हिमाचल,

अपना                   पहरेदार।

उत्तर  में कंचन   -किरीट  वह,

प्रकृति       दत्त       उपहार।।

गंगाजल    से पावन   धरती,

मोहक    साँझ        विहान।

ऊँचा कर    ललाट  रहता है,

अपना               हिंदुस्तान।।

करती नमन नित्य तव संतति,

मेरा          देश        महान।।


दक्षिण   में   चरणों को धोता,

गहरा          सागर       एक।

भाषाओं    के    इंद्रधनुष   में,

अपनी        हिंदी        नेक।।

सूत्र  एकता   का    है   सुदृढ़,

रंग       -      बिरंगे      वेश।

कलकल कर बहती हैं नदियाँ,

बहुविध     भारत        देश।।

गेहूँ    धान    उगाती  - धरती,

कृषक        स्वेद -   तपवान।

कण-कण तीर्थ धरा माटी का,

प्रभु -   आभा     का   मान।।

करती नमन नित्य तव संतति,

मेरा         देश         महान।।


उषा - लालिमा   है   प्राची में,

दिखलाती       नव     कांति।

खोल उठीं किसलय भी पलकें,

पादप      प्रेमिल       शांति।।

कीर करें  कलरव  कुंजों   में,

कोकिल     तोता          मोर।

खंजन  फुदक रही  खेतों   में,

हर्षित     तन -  मन  -  पोर।।

पवन - लहर में   नाच  रहे हैं,

गेहूँ ,          राई ,         धान।

मगन मस्त  मन  में हैं  अपने,

धरती  -   पुत्र        किसान।।

करती नमन नित्य तव संतति,

मेरा         देश         महान।।


पुनः  आगमन  के  हित जाता, 

 पश्चिम     में       रवि     डूब।

संध्या - परी    उतरती   नीचे,

दिखा      लालिमा      खूब।।

चाँद   संग   तारागण   लेकर,

भरता       गगन        प्रकाश।

टिम - टिम  तारे   करते  सारे,

करते      तमस   -   विनाश।।

निद्रामय     विश्राम   पसरता,

करता       नष्ट          थकान।

प्रातः हुआ   अरुणिमा  छाई,

बचा  न    क्लांति    निशान।।

करती नमन नित्य तव संतति,

मेरा          देश        महान।।


केसरिया   सित  और हरा रँग, 

एक     सूत्र        की      टेक।

बनते सब  मिल   एक तिरंगा,

'शुभम'       भावना     नेक।।

कमल,गुलाब,जुही,केसर की,

महकें          क्यारी      रोज़।

कवियों   की   वाणी में बरसे,

काव्य  -  सरित   से   ओज।।

संस्कृति सकल सुमेधामय ये,

नमन    करे      हर     प्राण।

रक्षक अपना धर्म   सनातन,

वही       देश    का    त्राण ।।

करती नमन नित्य तव संतति,

अपना        देश       महान।।


🪴 शुभमस्तु !


०९.०८.२०२१◆११.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...