बुधवार, 25 अगस्त 2021

पलाज़ो की जन्मकथा 🧣 [अतुकान्तिका ]

 

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 ✍️शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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एक  दिन की है बात,

हुई भी न थी अभी रात,

लहँगा और सलवार

करने लगे विचार,

बदल रही दुनिया

बदल रहे हैं आचार,

बदल गया है अब जमाना,

नई पीढ़ी का है

कुछ अलग ही पैमाना!

अपने यहाँ भी 

कुछ नया हो जाए,

साथ -साथ जमाने के 

क्यों न चला जाए?

हमें भी कुछ नया 

सोचना होगा,

अपने चाल-ढाल में

नवीनतम खोजना होगा!


इतने में फड़फड़ाता हुआ

आ  गया  सफ़ेद पाजामा,

जैसे कृष्ण - रुक्मिणी के

महल  में सुदामा,

बोला - 'अनुमति हो तो

 मैं भी कुछ फरमाऊँ,

आप दोनों को 

एक बीच का 

रास्ता भी सुझाऊँ,

लहँगे औऱ सलवार के

मन की हो जाए,

गज - गज  या कुछ

फुट भर के रंगीन 

छींट वाले  

पायजामे सिलवाएं,

उसे एक नया नाम दिलवाएं,

नामकरण जिसका

पेटोकोट जी से करवाएं।'


नाराज़ होता हुआ 

आया पेटोकोट,

आते ही कर दी न!

तीनों पर चोट,

'अकेले  ही अकेले 

पंचायत करते हो,

साड़ी रानी से

बिलकुल नहीं डरते हो?

वे आ गईं तो 

तीनों की खैर नहीं,

वैसे मेरा तुम सबसे 

कोई  बैर भी नहीं,

क्या आदेश है

मुझे भी समझाओ,

नामकरण कराना है

तो जल्दी से करवाओ।'


पाजामा  बोला 

नाराज़ मत हो,

इससे पहले कि

साड़ी देवी से

हम सबकी दुर्गति हो,

जल्दी से एक  नया नाम

 तुम ही  सुझाओ,

पेटीकोट मुस्कराया,

कुछ इधर कुछ उधर

लहराया फहराया,

और छोटा- सा 

 एक नया भी बताया-

इस रंगीन पाजामे  का

'पलाज़ो' नाम सुझाया,

पा जामे और ल हँगे का जो ड़,

वाह!वाह !! कर उठे सब

इसका नहीं कोई तोड़,

पूरी महफ़िल जोरों से

खिलखिला उठी,

नए जमाने की नई भूषा

 'पलाज़ो' के जन्म की

कहानी बनी।


और अब तो 'शुभम'

'पलाज़ो' सरपट 

  दौड़ रहा है,

घर -घर के पुराने पैमाने

मीटर तोड़ रहा है,

बड़ी - बूढ़ियों दादियों  को

अपनी ओर मोड़ रहा है।


🪴 शुभमस्तु !


२५.०८.२०२१◆११.४५

आरोहणम मार्तण्डस्य।

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