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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बादलों ने बिजलियों से,
मूक गठबंधन किया है।
उठ समंदर ने लहर मिस,
खूब अभिनंदन किया है।।
खोल कर आँचल खड़ी है;
प्यास से बेहाल धरती,
शज़र के भी अश्क सूखे;
पल्लवी क्रंदन किया है।
मसल देता पवन कलियाँ;
आँधियाँ तूफ़ान लेकर,
चमन उजड़ा जा रहा है;
धूप ने वंदन किया है।
आदमी भगवान बन कर;
रह गया है सिर्फ़ शैतां,
मैल जिसको वह बताता;
शीश धर चंदन किया है।
चाँद पर हैं कदम जिसके;
चाँद है खल्वाट उसकी,
मनुजता को मार कर भी,
सदन नंदन वन किया है।
आदमी भी जीव वैसा,
कीट , पशु, पक्षी वनैले;
पेट भरने में लगा है;
धूल को भी धन किया है।
'शुभम' कहता जा रहा है;
सातवें आकाश में हम,
मनुज - दंशन के लिए ही;
बहुत ऊँचा फ़न किया है।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०८.२०२१◆३.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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