मंगलवार, 24 अगस्त 2021

बंदर के कर नारियल 🐒 [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                           -1-

पढ़ना-लिखना छोड़कर, चमचा बनना ठीक

नेता का अनुगमन कर,पकड़ एक ही लीक।

पकड़ एक ही लीक,सियासत में घुस जाना।

चार  बगबगे सूट, शहर  में  जा  सिलवाना।।

'शुभम'न चला दिमाग़,भेड़ बन आगे बढ़ना।

शिक्षा है बेकार,  छोड़ दे लिखना  - पढ़ना।।


                             -2-

नेता  कभी  न  चाहते, पढ़ा- लिखा  हो देश।

चमचा बन पीछे चलें,बदल-बदल कर वेश।।

बदल -बदल कर वेश,देश के अच्छे बालक।

गड़ा  खीर    में शीश,बनें वे अंधे    घालक।।

'शुभम'चले बस काम,नहीं यदि पालक चेता।

हो  जाएँ   बरबाद,  चाहते  हैं सब   नेता।।

 

                         -3-

पालक  अंधे  आज के,भूल गए  हर  नीति।

बिना पढ़े  डिग्री मिले, बस अंकों से  प्रीति।।

बस अंकों  से  प्रीति, ज्ञान  गड्ढे   में  जाए।

देकर  बहु   उत्कोच, नौकरी ऊँची     पाए।।

'शुभम' न भावी ठीक,ज्ञान से खाली बालक।

सबका  बंटाधार,    मूढ़ अज्ञानी     पालक।।


                         -4-

पालक ही अंधे जहाँ, बालक भी  मतिमंद।

ज्ञान कोष खाली पड़े,मति की   पेटी  बंद।।

मति की  पेटी  बंद, खरीदीं डिग्री    जातीं।

गिरते सेतु धड़ाम, प्रसविनी मरकर  आतीं।।

'शुभं'चिकित्सक मूढ़,अज्ञ अभियंता चालक।

देश हुआ बरबाद,भ्रष्ट पितु -  माता पालक।।


                        -5-

बंदर के  हाथों   लगा,गोल नारियल    एक।

लुढ़काता निशि दिन फिरे, टर्राता ज्यों भेक।

टर्राता  ज्यों  भेक,जान मौसम   बरसाती।

मिले  मेढकी   एक, न देखे ठंडी  -  ताती।।

'शुभं'सियासत आज,घुसी कछुआ सी अंदर।

पाकर  अवसर नेक,  कूदती जैसे    बंदर।।


🪴 शुभमस्तु !


२३.०८.२०२१◆२.०पतनम मार्तण्डस्य।

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