◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
⛰️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
संघर्ष के
उत्तुंग शैल -शिखर
के उस पार,
सफलता का
दिव्य सूरज
करता है सबकी प्रतीक्षा,
जीवन तो
सबका ही होता है
कठिन परीक्षा,
देता है जो
क्षण प्रति क्षण
स्वावलंबन से
कठोर परिश्रम से
स्वेद बहाने की
शिक्षा ।
चुराते हैं जो
निज कार्य से
अपना जी,
नहीं मथते जो
दधि तक्र को,
नहीं कभी मिलता
उन्हें अमृतत्त्व घी,
रहते हैं आजीवन
वे हाथ मलते हुए
पछताते हुए ही।
चूमती है सफलता
उनके ही चरण,
कर लेता है जो
संघर्ष, समर्पण, लगन,
श्रम ,सेवा का वरण,
समय का सदा सदुपयोग,
दे ही देता है
मानव को सुयोग,
नहीं मिलता उसे
जीवन में किसी से
असहयोग।
करता है जो
अपनी ही सहायता,
प्रकृति भी करती है
उसकी बड़ी सहायता,
ईश्वर भी सदा सहायक
होते उसके,
होता है
प्रबल पुरुषार्थ
भुजाओं में जिसकी।
प्रयासों में कमी का
नाम ही है
विफलता,
तन,मन और लगन से
कर्म करना ही
सफलता की
सुदृढ़ कुंजी है,
यही तो सफलता की
'शुभम' दृढ़ पूँजी है,
सफ़ल मानव की ही
विजय ध्वनि
विश्व के गगन में
सदा गूँजी है।
🪴 शुभमस्तु !
०७.०८.२०२१◆७.००आरोहणम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें