बुधवार, 25 अगस्त 2021

नामांतरण के महारती ⛱️ [ व्यंग्य ]

 

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 ✍️ व्यंग्यकार©

 ⛱️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 

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              नवीन नामकरण करने में हम महारती हैं।उससे भी दस कदम आगे बढ़कर हम नाम बदलने में 'महारती' हो गए हैं।'महारती' इसलिए कि हम नए नाम रखने और बदलने में महारत हासिल कर चुके ख़ातिलब्ध महामानव हैं।यदि इस कार्य के लिए कोई उपाधि या सम्मान दिया जाए ,तो पीएच. डी. ;डी. लिट्. और डी.एस सी.भी छोटी पड़ जाएं।हमें आप महारथी कदापि न समझें, क्योंकि अब रथ रहे ,न रथ वाले और न रथ चालक। सियासती रथों की तो बात ही मत कीजिए।वे बैठेंगे करोड़ों की कार में औऱ कहेंगे रथ।उसमें बैठकर वे अपने को महारथी कहलवाकर गौरव की अनुभूति करते हुए भी नहीं अघाते।अरबों खरबों के महलों को झोपड़ी बताकर आयकर के छापे से बचने का नया नायाब तरीका भी उन्होंने खोज लिया है।इसी क्रम में यहाँ यह सिद्धांत भी लागू होता है ,जहाँ नामांतरण किया जा रहा होता है अथवा नामांतरण किया जाना है। 

          हम सब वही लोग हैं ,जो 'विलेज' को 'विला' बना देते हैं।क्योंकि 'विलेज'या 'गाँव' कहने में हमें शर्म आती है। कोई कहेगा कि गाँव में रहते हैं। सुनने कहने में कुछ विचित्र -सा लगे ,तो हमारे भाव बढ़ जाते हैं। छोटी -सी चीज़ अपने पहनावे से बात शुरू करते हैं।

           स्त्री -पुरुषों के अनेक परिधानों ने बड़ी लंबी यात्रा तय की है।नारी वस्त्रों में साड़ी,सलवार, लहँगा, पेटोकोट, कमीज़, ब्लाऊज, चुनरी ,ओढ़नी आदि की लंबी यात्रा के बाद पेंट ,जींस, लैगी और न जाने क्या क्या के बाद आज एक नई भूषा बहुत ही लोकप्रिय हुई है , वह है : ' पिलाज़ो' ।

                     एक दिन पुराने जमाने का अस्सी गज का लहँगा, दुबली पतली सींकिया सलवार, सफ़ेद बुर्राक पायजामा,( महिला मित्रों की कॉकटेल पार्टी की तरह मदद करने के लिए एक अदद पुरुष की कमी पूरी करने की ख़ातिर), नाराज - सा दिखता साड़ी के नीचे से सेवा करने वाला पेटोकोट ने गुपचुप साँठगाँठ करके एक एक ऐसा गठजोड़ तैयार कर लिया कि सारा जमाना उनका मुरीद ही हो गया। (इसे आप सियासती गठजोड़ कदापि न समझें, क्योंकि कि यह विशुद्ध सामाजिक गठजोड़ है।यहाँ जो होता है ,वह सभ्यता बन जाता है।भले ही हमारी महारत हमें गारत क्यों न कर दे,पर उसका इतिहास सोने के अक्षरों में लिख जाता है।) चूँकि पेटोकोट कहीं साड़ी रानी से चुगलखोरी न कर दे ,इसलिए सबने मिलकर उसे पुरोहित चुन डाला औऱ उसके गले में डाल ही दी नामकरण की जयमाला। पायजामा पुरुष की वहाँ खूब दाल गली। उसकी सलाह सबने सहर्ष मान ली कि नारियों के लिए पायजामे का रूपांतरण करते हुए उसका कायाकल्प ही कर डाला । झटपट पलक झपकते ही बिना साड़ी को जताए - बताए उसका नाम 'पिलाज़ो' कर डाला। वरना इस 'पिलाज़ो ' में साड़ी की क्या जरूरत? अथवा साड़ी के सँग पिलपिले 'पिलाज़ो' की कैसी सूरत! 'पिलाज़ो' को रंगीन , छींटदार औऱ बहुत से कलात्मक डिजायन में उसका नारीकरण कर डाला। पायजामे से 'प' (पि) , लहँगे से 'ल'(ला) औऱ जोड़ने का 'जो' ; बन गया 'पिलाज़ो' । 

                  आप जानते ही हैं कि आज फैशन का जमाना है। सो 'पिलाज़ो' तो पायजामे से भी पचास कदम आगे निकल गया । उसके एक -एक पैर का घेर एक मीटर तक पहुँच गया। भले ही एक घेरे में एक - एक बच्चा छिपा लो ,औऱ टी टी की नज़र से टिकट के पैसे भी बचा लो! बहु उद्देशीय बन गया 'पिलाज़ो'।जरूरत पड़े तो दोनों में पचास- पचास किलो गेहूँ खरीद लाओ और लैगी में टाँगें दिखाते हुए घर आ जाओ। घर पर गेहूँ पलटो, पुनः उसी में घुस जाओ। इसी प्रकार नाम बदल-बदल कर हम नया इतिहास बना रहे हैं।सभ्यता की चाँद में औऱ भी नए चाँद गज़ब ढा रहे हैं।बोतलों में मदिरा नहीं बदल पाते , बस लेबिल ही बदल पा रहे हैं। चाहे कपड़े हों या नगर , सड़क हो या डगर, दल हो या दलदल, धतूरा हो या कमल, नाम बदलने का भी बड़ा ही चमत्कार है।हमारी महारत है इस पवित्र कार्य में। गढ़े हुए मुर्दे खोदकर उनको खड़ा कर रहे हैं। यदि प्राण नहीं डाल सके तो क्या , हमारा नाम इतिहास निर्माताओं में तो लिखा जाने से भला कौन रोक सकता है! इतिहास भले ही दफ़न हो जाय ,पर वह अमर रहता है औऱ हम वे महारत लब्ध लुब्धक लोग हैं, जिन्हें इसी में संतोष है। हम बहुत बड़े संतोषी जीव हैं। औऱ 'जब आवे संतोष धन ,सब धन धूरि समान।' 

 🪴 शुभमस्तु ! 

 २५.०८.२०२१ ◆३.१५ पतनम मार्तण्डस्य।

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