गुरुवार, 5 अगस्त 2021

समर्पण 🛐 [ मुक्तक ]


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✍️ शब्दकार©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         -1-

जिसने किया अपना समर्पण धन्य है,

देश  के   हित    प्रेम  परम अनन्य है,

देश   से  ही   हम  सुरक्षित   हैं सदा,

निज  उदर  हित  सोचता  वह वन्य है ।


                         -2-

देश    पहले   धर्म    मज़हब  बाद   हैं,

देह - पोषण    के    लिए   वे खाद   हैं,

देश  ही    है  धर्म   सब  कुछ देश   ही,

जो    समर्पण    में    नहीं  बरबाद  हैं ।


                           -3-

ललकती    है     अवनि    बादल  जानता,

गरज    कर    अर्गल  बजा कुछ  ठानता,

कर     दिया   भू  ने   समर्पण मौन     ही,

बरसने   से    प्रथम   जल   को   छानता।


                            -4-

बरसती    है     मेघ     से  सावन- झड़ी,

तरसती   है    सेज     पर  विरहिन बड़ी,

लौटकर    अब     तो   चले आते   सजन,

मैं   समर्पण   को    तुम्हारे    हूँ    खड़ी।


                        -5-

कर्तव्य   के प्रति यदि समर्पण भाव  हो,

अधिकार-याचन का न ज़ाहिल ताव हो,

देश    की    भारी     समस्याएं   मिटें,

सबका 'शुभम' सद्भाव पूर्ण  स्वभाव हो।


🪴 शुभमस्तु !


०५.०८.२०२१◆७.४५आरोहणम मार्तण्डस्य 

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