◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
-1-
जिसने किया अपना समर्पण धन्य है,
देश के हित प्रेम परम अनन्य है,
देश से ही हम सुरक्षित हैं सदा,
निज उदर हित सोचता वह वन्य है ।
-2-
देश पहले धर्म मज़हब बाद हैं,
देह - पोषण के लिए वे खाद हैं,
देश ही है धर्म सब कुछ देश ही,
जो समर्पण में नहीं बरबाद हैं ।
-3-
ललकती है अवनि बादल जानता,
गरज कर अर्गल बजा कुछ ठानता,
कर दिया भू ने समर्पण मौन ही,
बरसने से प्रथम जल को छानता।
-4-
बरसती है मेघ से सावन- झड़ी,
तरसती है सेज पर विरहिन बड़ी,
लौटकर अब तो चले आते सजन,
मैं समर्पण को तुम्हारे हूँ खड़ी।
-5-
कर्तव्य के प्रति यदि समर्पण भाव हो,
अधिकार-याचन का न ज़ाहिल ताव हो,
देश की भारी समस्याएं मिटें,
सबका 'शुभम' सद्भाव पूर्ण स्वभाव हो।
🪴 शुभमस्तु !
०५.०८.२०२१◆७.४५आरोहणम मार्तण्डस्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें