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✍️ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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हरियाली
सावन की
नयनों को भायी,
जिसने देखा
सुखदायी।
बरसीं
बादल से
नन्हीं -नन्हीं बूँदें
बालक छपछपाते
कूदें।
गरजे
श्यामल बादल
अंबर में ऊँचे
बरस उठे
नीचे।
बिजली
कड़क रही
चमक रही भारी
बजा रही
ताली।
सरसी
सरस उठी
बरस उठी बदली
झकझोरे पवन
कदली।
टर्राए
टर्र-टर्र
दादुर दल भारी
बुलाते दादरी
प्यारी।
झंकार
झींगुर की
चीरती निशि सन्नाटा
बढ़ा रही
भयंकरता।
लालटेन
लिए अपनी
आ गए जुगनू
बिखेरते अपना
उजाला।
लबालब
नाले पोखर
झड़ता रहा पानी
रातें हुईं
तर।
नहीं
केंचुआ गिजाई
न वीरबहूटी आई
कैसी बरसात
आई।
सावन
मन भावन
आ गया रक्षाबंधन
पर्व स्नेह
भरा।
🪴 शुभमस्तु !
०८.०८.२०२१◆७.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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