मंगलवार, 24 अगस्त 2021

नदी रात -दिन चलती रहती 🗾 [ बालगीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🗾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नदी    रात -  दिन   चलती रहती।

मैदानों    में   कल  -  कल बहती।।


मम्मी   कहाँ    नदी    का   घर  है!

चली  कहाँ   से   चली   किधर  है!

कलकल छलछल कल छल कहती।

नदी      रात - दिन    चलती रहती।।


पर्वत     पिता      वही      है   माता ।

जन्म  -   जन्म     का   उनसे नाता।।

गहरे      बड़े      कष्ट     नित सहती।

नदी    रात   -   दिन   चलती रहती।।


धीमी     कभी       तेज       है   धारा।

वर्षा         में         डूबता    किनारा।।

सरिता    की      महिमा       है महती।

नदी     रात   -    दिन    चलती रहती।।


फसलों      का      सिंचन  करती  है।

प्यास   सभी   की    वह   हरती   है।।

आती        बाढ़       कगारें    ढहती।

नदी  रात    -  दिन     चलती रहती।।


सागर    से        मिलने      वह  जाती।

कभी      चहकती       वह इठलाती।।

'शुभम'    नहीं     सरिता  कुछ दहती।

नदी      रात  -  दिन     चलती रहती।।


🪴 शुभमस्तु !


२४.०८.२०२१◆५.४५ 

पतनम मार्तण्डस्य।

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