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✍️ शब्दकार ©
🗾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नदी रात - दिन चलती रहती।
मैदानों में कल - कल बहती।।
मम्मी कहाँ नदी का घर है!
चली कहाँ से चली किधर है!
कलकल छलछल कल छल कहती।
नदी रात - दिन चलती रहती।।
पर्वत पिता वही है माता ।
जन्म - जन्म का उनसे नाता।।
गहरे बड़े कष्ट नित सहती।
नदी रात - दिन चलती रहती।।
धीमी कभी तेज है धारा।
वर्षा में डूबता किनारा।।
सरिता की महिमा है महती।
नदी रात - दिन चलती रहती।।
फसलों का सिंचन करती है।
प्यास सभी की वह हरती है।।
आती बाढ़ कगारें ढहती।
नदी रात - दिन चलती रहती।।
सागर से मिलने वह जाती।
कभी चहकती वह इठलाती।।
'शुभम' नहीं सरिता कुछ दहती।
नदी रात - दिन चलती रहती।।
🪴 शुभमस्तु !
२४.०८.२०२१◆५.४५
पतनम मार्तण्डस्य।
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