◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️शब्दकार©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
-1-
पाँचों अँगुली नहीं एक - सी
फिर भी सम सम्मान हैं,
अपनी -अपनी नाप-तौल से,
नहीं मनुज अनजान हैं,
नीचे स्थित खड़ा अँगूठा,
तिलक लगाता माथे पर,
राह दिखाती एक तर्जनी,
पंजा बन बलवान है।।
-2-
छोटी - सी होती है चींटी
उसे न हम कमतर जानें,
भले उड़ा दे फूँक मार कर
गज ही नहीं सबल मानें,
दाँव लगेगा जब चींटी का
प्राण बचाना मुश्किल है,
सबका है सम्मान बराबर,
वृथा कमानें मत तानें।
-3-
मत समझें अबला नारी को
उसका है सम्मान बड़ा,
देह -शक्ति में सबल सिंह भी
माँस -पिंड के लिए अड़ा,
पशु -मानव में भेद न हो तो
मानव से पशु उत्तम है,
अबला है तन-मन से कोमल
किंतु पुरुष है परुष कड़ा।
- 4 -
अधिकारी मजदूर सभी के
अलग - अलग अधिकार हैं,
हैं कर्तव्य अलग ही उनके
मन में बसे विकार हैं,
सम्मानों की अलग तराजू
अलग बटखरे पैमाने,
'शुभम'न समझें जो इतना भी,
जीवन वे धिक्कार हैं।
-5-
सरिता, सर, सागर की तुलना
करना ही बेकार है,
सबका अपना -अपना जीवन
अलग सभी की धार है,
सरिता सींच रही धरती को
सागर से उठते बादल,
सम्मानों के सब अधिकारी
व्यंजन, स्वर , अनुस्वार हैं।
🪴 शुभमस्तु !
१७.०८.२०२१◆११.००आरोहणम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें