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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आनंद उर का खो गया है।
जाने कहाँ जा सो गया है।।
नित छलावा हो रहा है।
शूल दुख के बो रहा है।।
कुछ न कुछ तो हो गया है।
आंनद उर का खो गया है।।
क्या कहें लंबी कहानी।
कब मिलें घड़ियाँ सुहानी।।
वस्त्र जैसा धो गया है।
आंनद उर का खो गया है।।
स्वार्थ में नाते सने हैं।
अर्थ के सारे बने हैं ।।
नेह तो बस रो गया है।
आंनद उर का खो गया है।।
दीनता की ज़िंदगी है।
बंद नित की वंदगी है।।
कब मिला जो जो गया है!
आंनद उर का खो गया है।।
घाव शब्दों के लगे हैं।
दे रहे अपने सगे हैं।।
'शुभम' बोझा ढो गया है।
आनंद उर का खो गया है।।
🪴 शुभमस्तु !
३०.०८.२०२१◆६.००पतनम मार्तण्डस्य।
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