शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

पत्नी बनाम घर की लक्ष्मी 💃🏻 [ कुंडलिया ]

 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

💃🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

  -1-

भारत में गृहलक्ष्मी, का न उचित  परिवेश।

यदि  हो ऐसी कामना, जाओ मीत  विदेश।।

जाओ   मीत विदेश,चंचला वह   होती   है।

आज यहाँ कल वहाँ, प्रेम की निधि बोती है।

'शुभम' नहीं ठहराव, कई घर करती  गारत।

सहधर्मिणि हो एक,नीति यह चलती भारत।


   -2-

नाता पति का सुदृढ़ है, पत्नी से  लें  जान।

आती - जाती  लक्ष्मी,  नहीं करेगी  मान।।

नहीं   करेगी  मान,  छोड़ दूजे घर    जाए।

कल  थे  जो  पतिदेव,पलों  में बने   पराए।।

'शुभं' न उसको एक,कभी भी पति है भाता।

नहीं विष्णु अवतार, जन्म -जन्मांतर नाता।।

    -3-

देवी    पकड़ेगी   गला,  नहीं दबाएँ    पाँव।

गृहलक्ष्मी  जो  मानते, खेलेगी निज   दाँव।।

खेलेगी   निज  दाँव,  दबाओगे  पाँवों   को।

होगा जग उपहास,जताओ यदि गाँवों को।।

'शुभम' अगर स्वीकार,तुम्हें बनना पद सेवी।

तुम्हें    बचाए   ईश,  नहीं बख्शेगी    देवी।।


-4-

अपने को मत जानना,कमलापति भगवान।

सोओ खारी  क्षीरनिधि,बचें न नासा कान।।

बचें  न  नासा  कान,चंचला पाँव    दबावें ।

दबवाएँ  निज  पैर, जहाँ  चाहें वे   जावें।।

'शुभम' भली है एक, देख मत उनके  सपने।

कहलाती  जो  देवि, धाम में रह  तू  अपने।


 -5-

शैया साँपों की मिले, कमला के प्रिय कांत।

सागर में लहरें उठें,मन भी भीत  अशांत।।

मन भी भीत अशांत, लक्ष्मी चली न  जाएँ।

निशि दिन भय का भार, अकेले ही पछताएँ।

'शुभम' रहें पति मात्र, डूब जाए निधि  नैया।

रहें   रमा  से  दूर  ,खाट  की सोवें   शैया।।


देवी,देवि=लक्ष्मी।


🪴 शुभमस्तु !


१२.०८.२०२१◆५.१५ पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...