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✍️ शब्दकार©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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'मैं पुरुष
तुम नारी हो,
बेबस हो
बेचारी हो,
शादीशुदा हो अथवा
कुँवारी हो,
किन्तु तुम हो
जन्मजात अबला,
पुरुष से हीन
नहीं हो सबला,
आवश्यकता है तुम्हें
एक पुरुष के सहारे की,
तुम्हारे निकट ही हूँ मैं
तुम्हारा अग्रज अथवा अनुज,
तुम्हारी रक्षा मैं करूँगा,
ससुराल जाने के बाद भी।'
- ये रूढ़ दुर्बलकारी
भेदकारी मानसिकता
संस्कार की घुट्टी में
पिलाई गई ,
नारी की शक्ति जानकर भी
वह कमज़ोर
बनाई गई,
कहीं दुर्गा बनकर
पुरुष - सिंह पर
सवार न हो जाए,
इसलिए नारी को
मन से ही दुर्बलता की
घुट्टी क्यों न पिलाएँ?
इसी पौरुषिक सोच ने
नारी को
हीनता -बोध कराया,
उसे तन से ही नहीं
मन से भी कमज़ोर बनाया।
नारी सदैव से
सबला है,
रक्षा - सूत्र राखी
नारी - पथ का
अवरोधक है,
उसकी हीन
मानसिकता का
बोधक है।
राखी
रक्षा का नहीं,
भगिनी - भ्राता के
पावन-स्नेह का द्योतक है,
ताकि नहीं देखे
पुरुष किसी नारी को
दूषित दृष्टि से,
बने रहें मानवीय मानक,
सम्मान सहित
जो लिखा गया
हमारे नैतिक मूल्य
संवर्धक महान ग्रंथों में,
वरना पुरुष तो
स्वभावतः
नारी - लिप्सा का
मुखौटेधारी कीड़ा है,
मानव जाति के लिए
यही तो एक
पाशविक व्रीड़ा है,
विश्वास न हो तो
नित्य के समाचार पढ़ लें,
सुन लें ,
देख लें,
कि पुरुष की
नारी के प्रति
निरंतर कैसी चल रही
क्रीड़ा है।
नारी सबला है
सशक्त है,
शक्ति है ,
आवश्यक होने पर
रणचण्डी है,
पुरुष ने ही तो
खोल रखी
'लाल बाजार' में
बड़ी -बड़ी मंडी हैं,
जहाँ क्या होता है,
क्या यह भी
बताना होगा!
आइए 'शुभम'
हम इन रूढ़िवादी
सूत्र- बंधनों को तोड़ फेंकें,
यदि मन में है सद्भाव,
तो इन मिथ्या
दिखावटी धागों की
आवश्यकता ही क्या है?
दुर्भावी पुरुष तो
धागे के मुखौटे के नीचे
क्या कुछ नहीं करता!
नारी के शील का हनन
कब और कहाँ नहीं करता?
अपने को धोखा देने का
क्या ही उत्तम मार्ग
अपनाया है,
काम का कीड़ा
बहुरूपिया बन छाया है।
🪴 शुभमस्तु !
२०.०८.२०२१◆६.००आरोहणम मार्तण्डस्य।
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