◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
😄 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
पत्नी को घर की लक्ष्मी
कहते हैं लोग,
मुझे नहीं लगता
ऐसा कुछ उचित योग,
पति का रिश्ता
पत्नी से हो सकता है,
परन्तु लक्ष्मी से नहीं,
क्योंकि लक्ष्मी जी
आज कहीं
कल औऱ कहीं!
एक जगह डटकर
रहती ही नहीं,
एक जगह पर
रुकना ठहरना
उनके चरित्र में नहीं,
फिर पति से
लक्ष्मी जी की
पटरी कैसे
बैठ सकती है,
ऐसी 'लक्ष्मी'
पति से कभी भी
ऐंठ सकती है।
हाँ, पश्चिमी देशों में
पति औऱ लक्ष्मी का जोड़
सही बैठता है,
आज शादी
कल तलाक़ का
फार्मूला वहाँ खूब चलता है,
वहाँ के ' विष् णू' देव
अपनी 'लक्ष्मी 'के चरण
दबाते हैं,
'लक्ष्मियों' को गले
दबाने से ही फ़ुर्सत नहीं,
अब तो अपने देश में
भी ऐसे 'विष् णू'
मिल जाएंगे
हज़ारों में
कहीं न कहीं।
लक्ष्मी के लिए
एक अदद विष्णु भी
तो चाहिए,
भला पति कैसे निबाह
सकता है लक्ष्मी का साथ,
फिर बिस्तर लगाना होगा
शेषनाग के ऊपर
सागर की लहरों पर
करते हुए निर्वाह,
मालूम भी रखनी होगी
सागर की थाह,
कहीं करवट बदलने में
निकल ही गई आह,
तो बचाने भी
नहीं आएंगे
पनडुब्बी तैराक।
एतदनुसार
मेरी नेक सलाह मानिए
औऱ अपने घर में
लक्ष्मी मत लाइए,
फिर मत कहना कि
'शुभम' ने
पहले क्यों नहीं बताया,
औऱ मैं
एक अदद हुस्नपरी - सी
घर की लक्ष्मी ही
ले आया,
अब वह नहीं,
मुझे ही उसके
एक जोड़ी कोमल
गोरे-गोरे चरण युगल
दबाने होते हैं,
जब मेरे मम्मी पापा
पार्श्व कक्ष में
तानकर सोते हैं।
🪴 शुभमस्तु !
१२.०८.२०२१◆३.३०पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें