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✍️ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दिखें रात में नभ में तारे।
जाते कहाँ दिवस में सारे।।
टिम-टिम करके करते बातें।
अच्छी लगती हैं तब रातें।।
लगते हैं आँखों को प्यारे।
दिखें रात में नभ में तारे।।
माँ! तारों का घर अंबर में।
कैसे लटके वे अधवर में।।
आँखें ज्यों मिचकाते सारे।
दिखें रात में नभ में तारे।।
सूरज का क्या उनको है डर!
आग-ताप से कँपते दिन भर!
चंदा मामा सँग उजियारे।
दिखें रात में नभ में तारे।।
'उन्हें डाँटते सूरज दादा।
दिखने का मत करो इरादा।।
तारों पर वे पड़ते भारे।
दिखें रात में नभ में तारे।।'
क्यों न धरा पर वे आते हैं?
आने में क्या शरमाते हैं ??
'शुभम' चमकते जैसे पारे।
दिखें रात में नभ में तारे।।
🪴 शुभमस्तु !
२४.०८.२०२१◆४.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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