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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सदा सत्य है तत्त्व शेष सब घासी है।
जान लिया सत तत्त्व सदा आभासी है।।
सुनते हैं ईश्वर भी कोई होता है।
देखा नहीं किसी ने इंसां रोता है।।
मंदिर, मस्ज़िद, चर्च कहाँ का वासी है!
जाना लिया सत तत्त्व सदा आभासी है।।
पवन बहा करता है वह भी दृश्य नहीं।
जहाँ चाहता जाता पर वह वश्य नहीं।।
जल,थल, नभ, रहता प्रवात स्वशासी है।
जान लिया सत तत्त्व सदा आभासी है।।
वाणी से निकला अक्षर साकार कहाँ?
कागज़ पर उतरा लेता आकार वहाँ।।
मोबाइल के परदे का शुभ वासी है।
जान लिया सत तत्त्व सदा आभासी है।।
गोचर नहीं हृदय में बसता प्यार यहाँ।
जब विरक्ति में गया बदल तब यार कहाँ!!
घृणा, द्वेष, ममता सब कुछ ही नाशी है।
जान लिया सत तत्त्व सदा आभासी है।।
प्राण ,आत्मा भी किसको ये गोचर हैं ।
कब आते - जाते न जानते जौ भर हैं।।
'शुभम' पुरुष की प्रकृति सदा ही दासी है।
जान लिया सत तत्त्व सदा आभासी है।।
🪴 शुभमस्तु !
३१.०८.२०२१◆१०.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।
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