शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

झूठानुयायी बनाम सत्यानुयायी 🤍 [ अतुकांतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🤍 डॉ. भगवत स्वरूप  'शुभम'

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झूठ और सच

सच की चाल मंद-मंद,

झूठ फ़टाफ़ट

सरपट,

सच अंतर्भुक्त

झूठ प्रकट।


डरता हुआ - सा,

संकुचित सहमा -सा,

दबा - दबा - सा,

रुका -झुका - सा,

मगर उज्ज्वल दुग्ध -सा

रूप सबल  सच का।


सच को सिद्ध

करना पड़ता है,

प्रमाण देना -लेना पड़ता है,

परन्तु झूठ बलात्  

पिल पड़ता है,

अपनी हठ पर

बुरी तरह अड़ता है,

नहीं मानें तो 

हत्थे से

उखड़ पड़ता है,

नहीं सुनता किसी की,

सच देखता भी है,

सुनता भी है,

 अपने ताने - बाने को

ध्यान से  बुनता भी है।

सच मात्र सच को ही

चुनता भी है।


जमाना झूठ का,

दिन दहाड़े लूट का,

ईमानदार आदमी 

निरंतर टूटता,

जो जितना बड़ा झूठा

वह उतना ही बड़ा लूटा,

भले ही भरी दोपहर में

सड़क पर चप्पलों ने कूटा,

अख़बार में वही छपता,

बेशर्मी का लबादा

बदलता ,

 इस झूठ को छोड़

दूसरे झूठ में जा घुसता।


कमी ही नहीं

झूठ की ,

झुठानुयायियों की,

भीड़ की भीड़ ,

जैसे टिड्डियों की भीड़,

जहाँ भी बैठती

चौपट कर डालती

पहले गुदगुदाती

फिर बराबर सालती।


दिखाई देती है

तरक्की झूठ की,

चमचमाती है ऊँची

मंजिल लूट की,

सच के छप्पर पर

'शुभम' फूस भी

नहीं है,

उसे संतोष है कि

जो है वही सही है,

नहीं चुना उसने

झूठ का राजमार्ग,

उसने तो बस

अपनी टेढ़ी -मेढ़ी

पगडंडी की यात्रा ही 

चुनी है,

वह किसी विरक्त की

तप्त धूनी है।


🪴 शुभमस्तु !

१२.०८.२०२१◆२.००पतनम मार्तण्डस्य।

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