शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

ग़ज़ल 🛬

 

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✍️ शब्दकार ©

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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देश   के  हालात  अब  अच्छे नहीं   हैं।

बरसा  रहे जो फूल सब अच्छे नहीं  हैं।।


क्यों    मरे  जाते     हो   यों दीवानगी   में,

चाँद  के  तव   बाल जब अच्छे  नहीं  हैं।


कान   बहरे,   नयन   अंधे    भी   तुम्हारे,

आ  रहे  कल  के  भी  ढब अच्छे  नहीं  हैं।


इंसानियत  को  ताक पर रख कर चले हो,

उजले  नहीं  हैं दिन व शब अच्छे  नहीं  हैं।


आँधियाँ    तूफ़ान  भी कब तक  टिके  हैं,

बदनाम से  ये  हुए  बद    अच्छे नहीं  हैं।


अर्श   पर    पत्थर  चलाते  हो यहाँ    तुम,

फोड़  लो  ख़ुद  सिर   ग़ज़ब अच्छे  नहीं  हैं।


दूसरों  का   जो  भला  करता 'शुभम'   भी,

ज़िन्दगी  के   सुफ़ल    कब अच्छे   नहीं हैं!


🪴 शुभमस्तु !


२७.०८.२०२१◆९.१५ आरोहणम मार्तण्डस्य।


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