◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
👫🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
पिछले खेल-कूद सब भूले।
कैसे अब हम झूले झूलें।।
काटे बाग बनाई सड़कें।
जिन पर मोटर -कारें धड़कें।।
नहीं झूलतीं अब बहिनाएँ।
हमें कौन झूले झुलवाएँ।।
वे दिन गए नहीं वे बातें।
दिन सूने सूनी हैं रातें।।
नहीं मल्हारें कजरी गातीं।
माता बहिनें नहीं झुलातीं।।
झूलों के बस नाम बचे हैं।
मोबाइल के नाच नचे हैं।।
पींग बढ़ाकर झूला झूलें।
'शुभम'तभी हम खुश हो फूलें।।
🪴 शुभमस्तु !
१४.०८.२०२१◆१०.१५ आरोहणम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें