◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
वे जमाने अब नहीं हैं।
दिन नहीं वे शब नहीं हैं।।
कोयलों में कूक तो है,
पर वही वे ढब नहीं हैं।
प्यार के नाटक रँगीले,
प्यार में रँग अब नहीं हैं।
मन नहीं कपड़े रँगे हैं,
साधुता में फब नहीं हैं।
गाय खाते भक्त अंधे,
मानते वे रब नहीं हैं।
की पुताई चेहरों की ,
चेहरों में छब नहीं हैं।
सादगी सोना खरा है,
'शुभम' शोभन कब नहीं हैं।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०८.२०२१◆५.४५
पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें