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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ब्रजरज में श्रीकृष्ण का,हुआ दिव्य अवतार।
भाद्र अष्टमी अर्द्ध निशि, कृष्णपक्ष शुभवार।
नखत रोहिणी शुभ लगा,प्रकटे कारागार।
ज्योति रूप प्रभु आ गए,हर्षानंद अपार।।
सट-सट ताले खुल पड़े, स्वतः न कोई नाद।
सोये पहरेदार सब, छाया देह प्रमाद।।
प्रमुदित थे वसुदेव जी, भार्या उर आंनद।
विस्मित भयवश देवकी,बंध मुक्त स्वच्छन्द।।
कारागृह के ज्यों खुले, सारे सहज कपाट।
लगा यही बाहर खड़ा,देखे कोई बाट।।
ओढ़ा कर शिशु सूप में,पहुँचे यमुना तीर।
देख बाढ़ के दृश्य को,होने लगे अधीर।।
यमुना को प्रभुचरण का हुआ जरा सा भान
उतरा जल तब बाढ़ का,चमत्कार अनजान।
सूप लिए आगे बढ़े, पितु वसुदेव महान।
फ़न फैला कर शेष ने,की दोनों पर छान।।
अर्द्धनिशा की कुछ घड़ी,बीतीं घन अँधियार।
गोकुल पहुँचे नंदघर, करते नेह दुलार।।
सोई गहरी नींद में,मातु यशोदा आज।
कन्या को ले अंक में,शिशु को दिया सुसाज।
सघन निशा में लौटकर,आए जमुना पार।
मथुरा कारागार में,करके दशा - सुधार।।
गोकुल बजी बधाइयाँ, यशुदा जाया लाल।
नंद मुदित माते फिरें, बदले रँग रस हाल।।
ब्रज गोपी आने लगीं,देखें यशुदा लाल।
मनमोहन कान्हा बड़े,रस रंजन रसपाल।।
जब अष्टम अवतार की,मिली सूचना कंस।
गूँजा कारागार में,नाद सक्रोध स - संस।।
पैर पकड़ पाहन पटक,रहा कंस जब कूर।
छूट करों से नभ उड़ी,हाथ लगी बस धूर।।
🪴 शुभमस्तु !
२९.०८.२०२१◆३.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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