शनिवार, 21 अगस्त 2021

राखी बंधन नेह का 🌾❤️ [दोहा -गीतिका]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

❤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

भगिनी-भ्राता नेह का,पावन पर्व महान।

रक्षाबंधन देश में,दिखलाता निज शान।।


नारी अब सबला हुई,नहीं पुरुष-आधीन,

बंधन उसे न चाहिए,करें नारि का  मान।


गई  बहिन  ससुराल को,आते भ्राता  याद,

नेह-मिलन के हित सदा,पीहर करे पयान।


हीन - बोध की  घुट्टियाँ, नहीं पिलाएँ  बंधु,

बदले हैं संस्कार अब,बहिन हुई  बलवान।


नर - नारी पूरक सदा,यही प्रकृति  का  मूल,

पति- पत्नी भाई- बहिन,विविध रूप संज्ञान।


इंद्राणी    ने   इंद्र   को, बाँधी राखी      मंजु,

दे रक्षा  का वचन भी, किया वचन  सम्मान।


बलि को राखी  बाँध कर,रमा बन  गई त्राण,

नारायण की मुक्ति का,मिला सफ़ल वरदान।


कच्चा   धागा  नेह का,केवल एक   प्रतीक,

मन की साँची भावना, बन जाती पहचान।


नहीं  सहोदर ही 'शुभम', केवल  तेरा  बंधु,

कन्त पिता को छोड़ कर,सबको भाई मान।


🪴 शुभमस्तु !


२१.०८.२०२१◆३.१५पतनम मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...