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✍️ शब्दकार©
🛣️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सवाल ही सवाल हैं।
बवाल ही बवाल हैं।।
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ,
धमाल ही धमाल हैं।
फ़िक्र सिर्फ़ अपनी ही,
भेजे भर उबाल हैं।
दुरुस्त नहीं हाज़मा,
बिखरे बस उगाल हैं।
देख उन्हें जलते हैं,
अपने ही ज़वाल हैं।
भाता नहीं गैर भी,
मन में विष, मलाल हैं।
'शुभम' आज दुनिया में,
कमाल बस कमाल हैं।
ज़वाल =अवनति।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०८.२०२१◆५.००पतनम मार्तण्डस्य।
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