रविवार, 1 अगस्त 2021

कर्म मात्र अपना सखा 🌱 [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         -1-

जाता है जब आत्मा,जग जीवन को  छोड़।

शांति दिवंगत को मिले, हे ईश्वर  तव क्रोड़।।

हे  ईश्वर  तव  क्रोड़,कामना सब  ये करते।

जीवन से  मुख मोड़,सभी मरने  से  डरते।।

'शुभं'अटल ये सत्य,समझ मानव जो पाता।

शांतिपूर्ण तज देह,मनुज दुनिया से जाता।।


                          -2-

जीते जन की कामना,मिले इन्हें  बस शांति।

गया दिवंगत देह तज,चली गई तन-कांति।।

चली  गई तन- कांति, इन्हें देना अति पैसा।

सबका  है   समभाव, न  सोचे कोई   ऐसा।।

'शुभम' खुले दो हाथ,चले जाते  सब  रीते।

सुई न जाती साथ,कर्म कर जब तक जीते।।


                         -3-

सारा  जीवन श्वास का,सुथरा बिखरा  खेल।

सँभल-सँभल कर खेलना,सबसे रख नर मेल

सबसे रख नर मेल,प्रकृति पौधे पशु  पक्षी।

वन पर्वत सरि ताल,नहीं बन जीवन-भक्षी।।

'शुभम' गँवाता  श्वास, वही मानव   बेचारा।

जीता नरक समान,मनुज जीवन निज सारा।


                          -4-

अपने वश उद्भव नहीं,मरण न अपने  हाथ।

कर्म मात्र अपना सखा,आजीवन वह साथ।।

आजीवन वह साथ,कर्म शुभ ही  करना है।

बुरे कर्म  से मीत, सदा प्रभु से डरना   है।।

'शुभम'जानते धीर, सत्य मिथ्या क्या सपने!

जाते अंत न साथ,जिन्हें कहता तू  अपने।।


                           -5-

तेरा  -  मेरा   रट   रहा, तेरे तो बस   प्राण।

तज जाएँ वे एक दिन,तनिक नहीं पल त्राण।

तनिक नहीं पल त्राण,न देगा साथ न पैसा।

आए  अंतिम श्वास, करे क्यों ऐसा   - वैसा।।

'शुभम' कर्म  का संग, सदा ही होगा  मेरा।

अगली होगी यौनि, यहीं तक परिचय तेरा।।


🪴 शुभमस्तु !

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