शनिवार, 21 अगस्त 2021

खुजली 👂 [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         -1-

खुजली  मेरे   कान  की,कर देती     बेचैन।

बार -बार कुछ कह रही, आती नींद न रैन।।

आती नींद न रैन,घिसें जब अँगुली   भीतर।

आता अति आनंद, खुजाएँ जब तक जीभर

'शुभं'मिले तब शांति,कान में करती  चुग़ली।

डालें तिनका एक,मिटे कानों की  खुजली।।


                        -2-

खुजली कवि की जीभ की सहज न जाए मीत

कविता जब कोई सुने,होती कवि की जीत।।

होती कवि की जीत,वाह की ध्वनि जो आती

बढ़ता तन का ख़ून,कली उर की खिल जाती

'शुभं'जीभ का रोग,नदी कविता  की  उजली

बहती श्रोता बीच,मिटे रसना की  खुजली।।


                         -3-

खुजली जब उठती कहीं,करती है आह्वान।

कर देती बेचैन यदि,रखा न उसका  मान।।

रखा न उसका मान, खुजाए जाओ  भाई।

देगी सुख आंनद, रगड़कर अगर खुजाई।।

'शुभम' न सोचें औऱ,चूसते जैसे    गुठली।

पका हुआ हो आम, स्वाद देती है खुजली।।


                        -4-

नेता की लप जीभ की,खुजली बड़ी विचित्र।

भाषण को उकसा रही,ढूँढ़ रही  वह  मित्र।।

ढूँढ़  रही  वह मित्र,झूठ उनका  सह   पाए।

जाने-समझे  खूब, वाह  पर वाह   सजाए।।

'शुभम'खाज का रोग,सताकर ही रस लेता।

चौराहे  पर  एक,  मिटाता खुजली   नेता।।


                            -5-

खुजली मच्छर सिंह की,जग में बड़ी प्रसिद्ध

कौन बचा मानव यहाँ, नहीं हुआ हो बिद्ध।।

नहीं हुआ हो बिद्ध, बाद में रस  पाया  हो।

रगड़-रगड़ कर देह,ग़ज़ब तन पर ढाया हो।

'शुभम'रिस पड़े खून,खाल काली से उजली।

भले हो रहा दाह, खुजाते जाओ  खुजली।।


🪴 शुभमस्तु  !


२१.०८.२०२१◆७.००आरोहणम मार्तण्डस्य।


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