शनिवार, 21 अगस्त 2021

अभिमान 🦑 [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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वृक्ष बड़ा अभिमान का,गिरता शीघ्र धड़ाम।

रावण या शिशुपाल का,शेष न रहता नाम।।


अंधा जो अभिमान में,शेष न रहे   विवेक।

अभिमानी जो मनुज हैं,कहें न उनको नेक।।


'अभि'जुड़ते ही 'मान' में,शब्द बदलता रूप।

मीठी  सरिता  से बना,जैसे अंधा   कूप।।


सिर पर अगर सवार है,मदिर मत्त अभिमान

बना भेड़िया घूमता,कर में लिए   कमान।।


सहज भाव रहता नहीं,यदि उर में अभिमान।

दोषों का भंडार वह,अघ अवगुण की खान।


रावण भी अभिमान वश, भूला नीति अनीति

वंश मिटाया आप निज,गई हृदय से प्रीति।।


अभिमानों  में  चूर  हो,रहा न मानव  कंस।

भगिनी  की  संतान ने, सहज उड़ाया  हंस।।


स्वाभिमान रखिये सदा,मार अहं,अभिमान।

प्रगति  सदा  होती  रहे,बनी रहेगी    शान।।


जिसने भी अभिमान से,रखा शृंग पर नाम।

गया रसातल में सदा, चमकाता निज चाम।।


धन बल तन सौंदर्य का,जिसको है अभिमान

अमर नहीं ये तत्त्व सब,आँधी की सब छान।


जिन वृक्षों पर फल लदे,रहता सहज विनीत।

अधजल गगरी छलकती, स्वाभिमान की जीत


🪴 शुभमस्तु !


१९.०८.२०२१◆५.००पत नम मार्तण्डस्य।

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