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✍️ शब्दकार ©
🎓 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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भय विहीन जन हो गया,बढ़ता है नित पाप।
बुरे कर्म से डर नहीं, जला रहे संताप।।
संतति को माँ बाप का,शेष नहीं भय लेश।
कर्म बुरे करते रहें, सहलाता घर केश।।
नकल परीक्षा में करें, सीना ऊपर तान।
ज्ञान रसातल को गया,भय का नहीं निशान।
नकल करें निधड़क रहें,अंकों की भरमार।
शत-प्रतिशत लें अंक वे,मात पिता का प्यार।
जनक, बंधु, जननी यहाँ, उत्तरदायी पूर्ण।
विकृतकर अभिभाव्य को ,करें ज्ञान का चूर्ण
अज्ञानी झंडा लिए ,करते हैं हड़ताल।
उन्हें नौकरी दीजिए , हैं खल्वाट कपाल।।
ज्ञान - गंज के देश में, ज्ञानी गिरते कूप।
सत्तासन को लूट कर,बन जाते हैं भूप।।
राजनीति को नीति से,नहीं तनिक भी प्यार।
बिना नीति ही चल रही,गाड़ी धक्का मार।।
कानूनों से भय नहीं, बड़े हो गए पेट।
कमरे नोटों से भरे,सील बंद है गेट।।
नहीं पुलिस-बल से डरें,जनता, डाकू, चोर।
नेता जी ही पालते, चोर मचाए शोर।।
कितने राम रहीम हैं, कितने आशा राम।
नहीं पाप से डर रहे, कारागृह विश्राम।।
नव यौवन से खेलते, निर्भय राम रहीम।
आशारामी ओढ़कर, दिखलाते नव थीम।।
कुर्सी उनको चाहिए, निर्भय तज कानून।
चाहे लगती आग हो,या हो जन का खून।।
भाँग पड़ी हर कूप में,निर्भय सारा देश।
आदम आदम को ठगे,बदल बदलकर वेश।
अब नाता भय - प्रेम का,नहीं देश में शेष।
ज़बरन करते प्रेम वे,'शुभम' नहीं वे मेष।।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०८.२०२१◆३.१५ पतनम मार्तण्डस्य।
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