शनिवार, 20 मई 2023

खटास ● [ अतुकांतिका ]

 217/2023

       

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●शब्दकार ©

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

चखे नहीं जाते दिल

मात्र देखे  औऱ महसूस

किए जाते हैं,

वे आम हैं न टिकोरे

फिर भी रखते हैं

अपनी खटास या मिठास।


दूध में

 डाली गई खटास से ,

फटकर विकृत भी

होता है,

और जमकर दही भी

बन जाता है,

यह सब खटास के 

अनुपात पर

और दुग्ध के ताप पर

निर्भर हो जाता है।


नापें सभी 

अपने - अपने 

दिलों की खटास 

या मिठास,

बनना है वही

जिसमें हो आशा और

विश्वास,

काश हर आदमी 

ऐसा होता,

फिर इस धरणी पर

स्वर्ग क्यों न होता?


उड़ तो सभी लेते हैं

अपने डैनों पर,

पर अन्तर होता है

उड़ान -उड़ान का,

तितली और चील की

पहचान का,

अम्बर और उद्यान का।


दिनकर से ही

होता है 

दिवस का उजास,

जुगनुओं से नहीं,

फिर भी जुगनू

करता है  प्रयास,

तम - नाश।


आओ 'शुभम्'

अपना उजाला फ़ैलाएं,

दिलों की खटास में

मिठास भर लाएँ,

अपने -अपने प्रयास में

कोई कमी क्यों लाएँ!

धरती को

मानव के

 रहने योग्य बनाएँ।


●शुभमस्तु!

19.05.2023◆6.30आ०मा०


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...