217/2023
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●शब्दकार ©
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चखे नहीं जाते दिल
मात्र देखे औऱ महसूस
किए जाते हैं,
वे आम हैं न टिकोरे
फिर भी रखते हैं
अपनी खटास या मिठास।
दूध में
डाली गई खटास से ,
फटकर विकृत भी
होता है,
और जमकर दही भी
बन जाता है,
यह सब खटास के
अनुपात पर
और दुग्ध के ताप पर
निर्भर हो जाता है।
नापें सभी
अपने - अपने
दिलों की खटास
या मिठास,
बनना है वही
जिसमें हो आशा और
विश्वास,
काश हर आदमी
ऐसा होता,
फिर इस धरणी पर
स्वर्ग क्यों न होता?
उड़ तो सभी लेते हैं
अपने डैनों पर,
पर अन्तर होता है
उड़ान -उड़ान का,
तितली और चील की
पहचान का,
अम्बर और उद्यान का।
दिनकर से ही
होता है
दिवस का उजास,
जुगनुओं से नहीं,
फिर भी जुगनू
करता है प्रयास,
तम - नाश।
आओ 'शुभम्'
अपना उजाला फ़ैलाएं,
दिलों की खटास में
मिठास भर लाएँ,
अपने -अपने प्रयास में
कोई कमी क्यों लाएँ!
धरती को
मानव के
रहने योग्य बनाएँ।
●शुभमस्तु!
19.05.2023◆6.30आ०मा०
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