208/2023
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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पक्षपात होता जहाँ, मिलता वहाँ न न्याय।
नीति नियम हों ताक पर,बँटे उपानह चाय।।
नीर-क्षीर जो छाँटता,न्याय करे सविवेक।
पक्षपात करता नहीं, वही ईश-धी नेक।।
वर्ण,जाति के भेद से,करते जो अन्याय।
पक्षपात से वे बनें, घृणा-पात्र निरुपाय।।
पक्षपात करता नहीं, पाता नर सम्मान।
हंस उसे कहते सभी, करता सत्य -विहान।।
जिनके रग-रग में बहे,पक्षपात का खून।
नहीं अपेक्षा कीजिए,उनसे कण भर चून।।
पक्षपात होता नहीं,मानव मूढ़ समाज।
धरती होती स्वर्ग-सी,गिरती कभी न गाज।।
कितने मूढ़ अयोग्य जन,पक्षपात के हेत।
पाकर सेवा देश में,चरते खुलकर खेत।।
पुल टूटें रोगी मरें, शिक्षक भी अज्ञान।
पक्षपात जिस देश में,कहता कौन महान??
नेता में वह बीज है, बोता सारे देश।
पक्षपात की फसल से, लहराए बक-वेश।।
जनक-जननि करते नहीं, पक्षपात सुत-संग।
होते पूत कपूत भी, भरे वासना-रंग।।
●शुभमस्तु !
15.05.2023◆9
आ०मा०
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