231/2023
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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चलता है जो सत्यपथ,होती उसकी जीत।
दुनिया गाती नित्य ही,सदा विजय के गीत।।
ऋतुओं का आवागमन, पावस शरद वसंत,
तपता सूरज ग्रीष्म का,कभी सताए शीत।
क्षण-क्षण को खोएँ नहीं,सदा करें उपयोग,
उत्सव-सा जीवन जिएँ,समय न जाए बीत।
स्वार्थ भरा संसार है, करें प्रदर्शन लोग,
उर में काला खोट है,एक न अपना मीत।
राह बताएँ पूर्व की, जाता पश्चिम ओर,
ऐसा मनुज स्वभाव है,चले चाल विपरीत।
इतना भय पशु से नहीं, हिंसक भालू शेर,
मानव का आहार नर, रहता सदा सभीत।
'शुभम्'नहीं विश्वास अब, रहा मनुज का शेष,
धोखा दे नर जी रहा, माटी हुई पलीत।
●शुभमस्तु !
29.05.2023◆6.30 आ.मा.
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