सोमवार, 1 मई 2023

मन वृन्दावन-धाम 🏕️ [ गीतिका ]

 184/2023

  

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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चलें   गाँव   की   ओर,जहाँ है मूल  हमारा।

कनकाभायुत भोर,खिला शुभ फूल हमारा।।


नित्य प्रकृति के साथ,जी रहा मानव जीवन,

प्रभु से सदा सनाथ,समय अनुकूल  हमारा।


तरु की ठंडी छाँव,सुखाती श्रमजल तन का,

कोकिल  का कल राग, उगे तांबूल  हमारा।


लहराते   गोधूम,  चना, यव, धान,   बाजरा,

पवन  रहा  है   चूम, सरित सुदुकूल  हमारा।


दीवाली     के   दीप,   कभी होली   रँगराती,

भू का  कृषक  महीप,  नाथ आमूल  हमारा।


देतीं   भैसें - गाय,  सुधावत दुग्ध   निराला,

सीमित धन की आय,तदपि उर-हूल हमारा।


नहीं झूठ के काम, बनावट किंचित हो क्यों!

मन  वृंदावन-धाम, नहीं  रिपु शूल  हमारा।


पूजा   ही    है   कर्म, देह  से स्वेद  बहाना,

बना  गाँव  का  धर्म,  ईश समतूल   हमारा।


'शुभम्' गाँव की ओर,चलें प्राकृत हो जीवन,

खिलें आम्र  तरु  बौर,सुदृढ़ मस्तूल  हमारा।


🪴शुभमस्तु !


01.05.2023◆9.30 आ.मा.

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