193/2023
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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बिगड़ा हुआ समाज,हृदय के काले हैं।
गिरे न क्यों सिर गाज,वाक पर भाले हैं।।
गले न झाँकें आप,देखते दोष उधर,
चढ़ा रहे तन ताप, जीभ में छाले हैं।
करते हैं अपराध, उन्हें स्वीकार नहीं,
चलते पाँव अबाध, पाप ने ढाले हैं।
होता जन- संहार,मजहबी शान दिखा,
आस्तीन में नाग , सपोले पाले हैं।
मानव का आहार ,आदमी आज बना,
छाया बुद्धि - विकार, ज्ञान पर ताले हैं।
फूल न खिलते बाग , धतूरे के जंगल,
लगी देश में आग, मनुज मतवाले हैं।
'शुभम्' नहीं विश्वास,घात के बीज उगे,
कैसे लें नर श्वास, प्राण के लाले हैं।
08.05.2023◆11.45आ.मा .
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