195/2023
[पथिक,मझधार,आभार, उत्सव,छाँव]
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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
कौन पथिक जग में नहीं,चलते पथ दिन-रात
लख चौरासी योनि में,कब संध्या कब प्रात।।
थका पथिक तरु छाँव में,चाहे अल्प विराम।
जीव किंतु थकता नहीं,चलना ही बस काम।
लेकर नौका कर्म की,जाना है उस पार।
नहीं पंथ ऐसा चले, डूबे तू मझधार।।
रे केवट मझधार में,मत दे धोखा मीत।
नाव सुरुचि से तू चला,गाता चल मधु गीत।।
जो साथी पथ में मिले, उन सबका आभार।
सुगम पंथ अपना हुआ,जीवन का उपहार।।
तिनके का आभार भी,नहीं छोड़ना मीत।
कहाँ कौन अपना बना,पथ में हुआ प्रतीत।।
जीवन उत्सव जीव का,पथ कर्मों की नाव।
जर्जर से धोखा मिले, बना रखे शुभ भाव।।
भूल न जाना खेल में,उत्सव जीवन-गीत।
रुकना मत पथ भूलकर,तभी तुम्हारी जीत।।
कौन नहीं नर चाहता,मिले सघन शुभ छाँव।
कर्म-पंथ को त्यागकर,लगा न देना दाँव।।
मिले छाँव सोना नहीं,ज्यों सोया खरगोश।
जीवन लंबी दौड़ है,खो मत देना होश।।
● एक में सब ●
पथिक! छाँव शीतल मिली,
रुकना मत मझधार।
जीवन उत्सव कर्म का,
तिनके का आभार।।
●शुभमस्तु !
09.05.2023◆11.00प.मा.
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