229/2023
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●शब्दकार ©
● डॉ भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
अमराई में कूकते ,नर पिक सस्वर गीत।
सुन विरहिन-उर जागती,एक टीस हित मीत
एक टीस हित मीत, तप रही जैसे धरती।
मिली न जल की बूँद,प्यास से नारी मरती।।
'शुभम्' प्रतीक्षा लीन,गई तिय देह लुनाई।
टपकें पके रसाल,सज रही झुक अमराई।।
-2-
अमराई के बीच में, बसा हुआ है गाँव।
घुस पातीं लूएँ नहीं,सघनित शीतल छाँव।।
सघनित शीतल छाँव,ज्येष्ठ का तप्त महीना।
जलें न नंगे पाँव, शरद से शीतक छीना।।
'शुभम्' रसीले आम,बाँटते मधुर खटाई।
बनी गाँव की आन,चतुर्दिक छा अमराई।।
-3-
अमराई में छा रहे, तरह-तरह के आम।
हिमसागर, केशर सभी,लँगड़ा वृक्ष तमाम।।
लँगड़ा वृक्ष तमाम, सिंधुरा, नीलम सारे।
फजली ,चौसा खूब,दशहरी रस से भारे।।
'शुभम्' आम वनराज,मल्लिका भी है भाई।
रत्ना,अर्का अरुण, मधुर सुंदर अमराई।।
-4-
अमराई में मिल गए, नैनों से दो नैन।
शब्द एक निकला नहीं,मौन बोलतीं सैन।।
मौन बोलती सैन, चैन काफूर हुआ है।
इधर भाड़ की आग,उधर गंभीर कुँआ है।।
'शुभम्' हर्ष का लोप,हिमंचल बनती राई।
मिले विटप की ओट,साक्ष्य देती अमराई।।
-5-
अमराई में डाल कर, एक खुरहरी खाट।
माली -मालिन देखते, आमों की नित बाट।।
आमों की नित बाट, खेलते छोरा - छोरी।
ढूँढ़ टिकोरे स्वाद, ले रही बेटी गोरी।।
'शुभम्' सोलवीं साल, सुहाए उसे खटाई।
चटनी चाटें खूब ,प्रेम से जा अमराई।।
●शुभमस्तु!
28.05.2023◆12.45प०मा०
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