226/2023
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● शब्दकार©
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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शल्य -द्रुम की
मचानों पर
बया के घोंसले लटके।
बया मादा
संग नर भी
सजाते घास के तिनके।
उजाले के
लिए जुगनू
घोसलों में छिपे चमके।।
निराली है
अजब दुनिया
रहा करते बिना खटके।
युगल -श्रम
चमक उठता
नई दुनिया बसा लेता।
चीलों गीध
से बेहतर
सजीला नीड़ रँग देता।।
वृथा क्यों खग
बया बुनकर
गगन में भृंग- सा भटके!
सभी मानव
सु -तन धारी
अलग जीवन बिताते हैं।
बना करते
कोई जौंक
विरल सोना कमाते हैं।।
अलग जीना
अलग मरना
चले कुछ राह में अटके।
बनाए हैं
विधाता ने
बड़े -छोटे सभी घट ही।
खरे - खोटे
सुघर टूटे
न रहने की न आहट ही।।
नहीं रुकता
भरा पानी
रहे कुछ जन्म से चटके।
●शुभमस्तु !
25.05.2023◆2.45प०मा०
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