सोमवार, 29 मई 2023

देखा नहीं मुहूर्त ● [ गीतिका ]

 232/2023

 

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● शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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देखा नहीं  मुहूर्त, ब्याह यों ही कर   डाला।

कैसा   ज्ञानी  धूर्त, डालते  टूटी    माला।।


करता  नहीं  विमर्श, थोपता अपना  निर्णय,

कैसे  हो   उत्कर्ष, घोलता विष  का प्याला। 


नहीं लिंग का ज्ञान,पुरुष को नारी   कहता,

गंगाजल  में  डाल, रहा  है घातक   हाला।


द्वार  बुद्धि  के  बंद,बजाता अपनी  ढपली,

दबा  धरा में  कंद, गली का बहता   नाला।


अहंकार साक्षात, रूप धारण जब   करता,

सुने न  कोई  बात,  लगा है धी पर   ताला।


अधजल गगरी छलक,छलक जाती है बाहर,

भरी न होती किलक,न दिखता नीर निवाला


सबका मालिक एक, मात्र मुझको  पहचानें,

मुझमें मात्र विवेक,शेष सब गरम  मसाला।


सबका  है  इतिहास,  बुरा अच्छा या  जैसा,

मनुज समय का ग्रास,समय ने जैसा   ढाला।


'शुभम्' एक ही ईश, हाथ मानव के  खाली,

मानव तो बस कीश,छतों से गिरा   पनाला।


●शुभमस्तु !


29.05.2023◆8.30आ०मा०

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