85/2023
[कोंपल,कलगी,कुसुम,डाली, विटप]
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ० भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🩷 सब में एक 🩷
ललछोंही कोंपल ललित,लगे अधर-सी लाल
पीपल- दल बातें करें,चलते चंचल गाल।।
कोंपल-कोंपल नीम हैं,शीशम वट कचनार।
पीपल हँसते बाग में, कुसुमाकर- त्योहार।।
कलगी नाचे शीश पर,दुलहा के पुरजोर।
उठा पलक देखे वधू, उर में उठे हिलोर।।
कलगी नव गोधूम की,करती चपल किलोल
नाचे रह-रह खेत में,मौन अधर के बोल।।
जेठ और वैशाख में ,खिलती नवल बहार।
कुसुम कली हँसने लगी,छाया मधुप खुमार।
कुसुम शाख- सी हैं भुजा,चंदन चर्चित देह।
नृत्य नवोढ़ा कर रही,जा प्रियतम के गेह।।
डाली-डाली पर लदे, हरे टिकोरे आम।
टूट - टूट धरनी गिरें, सुबह, दुपहरी, शाम।।
आलिंगन भुजबंध में,डाली पाटल - फूल।
साजन - सजनी मोद में,गए अपनपा भूल।।
बड़े बाग के बीच में,विटप विशद छतनार।
बरगद का सौ वर्ष का,छाया का उपहार।।
पीपल, शीशम,नीम के,वट,चंदन या आम।
विटप सकल शृंगार हैं,करते धरा ललाम।।
🩷 एक में सब 🩷
कुसुम-कली कोंपल कलित,
विटप आम का एक।
कलगी डाली पर सजा,
झूमे रूप अनेक।।
🪴शुभमस्तु!
03.05.2023◆6.45आ०मा०
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