गुरुवार, 4 मई 2023

कुसुम कली कोंपल कलित 🪴 [ दोहा ]

 85/2023

 

[कोंपल,कलगी,कुसुम,डाली, विटप]

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ० भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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      🩷 सब में एक 🩷

ललछोंही कोंपल ललित,लगे अधर-सी लाल

पीपल- दल  बातें  करें,चलते चंचल  गाल।।

कोंपल-कोंपल नीम हैं,शीशम वट कचनार।

पीपल हँसते बाग में,  कुसुमाकर- त्योहार।।


कलगी  नाचे  शीश पर,दुलहा  के पुरजोर।

उठा  पलक  देखे  वधू, उर  में उठे  हिलोर।।

कलगी नव गोधूम की,करती चपल किलोल

नाचे रह-रह खेत में,मौन अधर  के   बोल।।


जेठ और वैशाख में ,खिलती नवल   बहार।

कुसुम कली हँसने लगी,छाया मधुप खुमार।

कुसुम शाख- सी हैं भुजा,चंदन चर्चित देह।

नृत्य नवोढ़ा कर रही,जा प्रियतम  के  गेह।।


डाली-डाली  पर  लदे,  हरे टिकोरे   आम।

टूट - टूट  धरनी  गिरें, सुबह, दुपहरी, शाम।।

आलिंगन भुजबंध  में,डाली पाटल - फूल।

साजन -  सजनी मोद में,गए अपनपा भूल।।


बड़े बाग के बीच में,विटप विशद  छतनार।

बरगद  का सौ वर्ष  का,छाया का   उपहार।।

पीपल, शीशम,नीम के,वट,चंदन या  आम।

विटप सकल शृंगार हैं,करते धरा  ललाम।।


     🩷 एक में सब 🩷

कुसुम-कली कोंपल कलित,

                   विटप आम का एक।

कलगी डाली पर   सजा,

                         झूमे  रूप अनेक।।


🪴शुभमस्तु!


03.05.2023◆6.45आ०मा०

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