196/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
मौन जीभ की मुखर कहानी।
देख जलेबी टपके पानी।।
सब कहते हैं जीभ चटोरी।
लाल रंग की लगती भोरी।।
स्वादों की है कथा पुरानी।
मौन जीभ की मुखर कहानी।।
कभी माँगती तीखा मीठा।
और कभी ये खट्टा सीठा।।
कड़वी भी दातौन चबानी।
मौन जीभ की मुखर कहानी।।
नमक बहुत ही लगता प्यारा।
बिना नमक सब स्वाद बिगारा।।
सब्जी - दाल नहीं है खानी।
मौन जीभ की मुखर कहानी।।
देख मिठाई ये ललचाए।
मुँह में लार खूब भर लाए।।
स्वाद लिए बिन हटे न मानी।
मौन जीभ की मुखर कहानी।।
कभी माँगती रसना ठंडा।
गर्म कभी , क्या इसका फंडा??
'शुभम्' नियंत्रण में ये लानी।।
मौन जीभ की मुखर कहानी।
●शुभमस्तु !
10.05.2023◆6.45आ.मा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें