गुरुवार, 11 मई 2023

ऋण से पा लें मुक्ति ● [ दोहा ]

 191/2023


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●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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देव,पितृ,गुरु,लोक ऋण, पंचम ऋण है भूत।

लेकर आता विश्व में,समझ नहीं   ये   द्यूत।।

यज्ञ कार्य  से देव ऋण, श्राद्ध कर्म  से  पित्र।

ज्ञानदान गुरु ऋण चुके,दिए लोकऋण मित्र।


शिव-आराधन मुक्ति का,भूत ऋणों से मीत।

पंच ऋणों से मुक्ति पा,जन्म-बंध ले जीत।।

मनसा, वाचा, कर्मणा,दे न दुःख जो जीव।

भूत ऋणों से मुक्ति पा,माने शिव को पीव।।


आजीवन  सेवा करे,जननी- जनक सपूत।

ऋण से  पाता मुक्ति नर,पाए शांति अकूत।

जिस धरती का अन्न खा, पीकर निर्मल नीर।

बने देह,मन,धी सभी, भूल नहीं  ऋण धीर।।


पंच तत्त्व का ऋण सदा,भू जल शून्य समीर।

पावक पंचम तत्त्व है,चुकता कर  धर  धीर।।

अपने देश समाज के,अनगिनती ऋण धार।

भूल रहा नर गेह में,फँसकर जाति-विकार।।


होना  हो  कृतकृत्य तो,मन में करे   विचार।

ऋण से पाकर मुक्ति तू,दुख से करे  निवार।।

'शुभम्'बिना ऋण के कभी,बढ़े न नर दो पाँव

सोच-समझ तू कर्म कर,मिले सुखों की छाँव


●शुभमस्तु !


08.05.2023◆10.15आ.मा.

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