गुरुवार, 25 मई 2023

पानी ● [ दोहा ]

 225/2023

             

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● शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पानी से हर  जीव का,है अपना  अस्तित्त्व।

दिया आपकी देह में,जल का सघन घनत्त्व।।

जीव,जंतु,पादप,लता,धरा,गगन,सरि,ताल।

पानी से आबाद हैं,सिंधु, अचल,नद ,नाल।।

 


तपता  सूरज  ग्रीष्म  में,बरसे पानी   धार।

पावस में   जलवृष्टि हो,धरती करे  पुकार।।

ज्यों-ज्यों धन बढ़ने लगा,हृदय गया है रीत।

पानी आँखों का मरा, दिवस गए  वे  बीत।।


पानी का दोहन करे,अतिशय मानव आज।

कल की सोचे ही नहीं, गिरे शीश पर गाज।।

सब  -  मर्सीबल  पंप से,भैंस नहाएँ नित्य।

बहता  पानी  राह  में,जाने कब  औचित्य!!


गौरैया  प्यासी   मरे, प्यासे कीर  , मयूर।

पानी वृथा उलीचता, मानव अब का कूर।।

पौधारोपण  कर  गए,अपनी आँखें  मींच।

नेता उतरे   कार  से,दिया न पानी  सींच।।


पत्ती -  पत्ती   माँगती  ,पानी से ही   त्राण।

मानव , बादल  नीर दे,बचने हैं तब  प्राण।।

सत्तर प्रतिशत अंश है,पानी का भुवलोक।

फिर भी प्यासे जीव हैं,मना रहे जल-शोक।।


● शुभमस्तु!


24.05.2023◆11.45आ.मा

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