189/2023
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●शब्दकार©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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स्वस्तिक'शुभं'प्रतीक है,सरल भुजाएँ चार।
धर्म,मोक्ष,धन,काम का,सदा सकल आधार।
स्वस्तिक पहली बार ये, गुहा देश यूक्रेन।
पाया था नव खोज में, अवगत मानव-नैन।।
स्वस्तिक का इतिहास है,द्वादश वर्ष हजार।
है प्रमाण यूरोप में, वर्ष अष्ट सहसार।।
चार मुक्ति के द्वार हैं, स्वस्तिक के सारूप्य।
हैं सालोक्य सामीप्य भी,मुड़ी रेख सायुज्य।।
अहंकार,मन,चित्त,धी,अन्तः करण वि-चार।
स्वस्तिक में बसते सदा,जीवन में साकार।।
प्रेम,समर्पण साथ में, हो मन का विश्वास।
श्रद्धा स्वस्तिक में रहे,प्रसरित करे उजास।।
जैन, बौद्ध,हिन्दू सभी,दें स्वस्तिक को मान।
गणपति का ये चिह्न है,विश्वम्भर का ज्ञान।।
ऊर्जा सदा नकार की, रहती इससे दूर।
स्वस्तिबोध स्वस्तिक करे,कल्याणक ये नूर।
ब्रह्मा,विष्णु,महेश सँग, गौरी पुत्र गणेश।
स्वस्तिक में बसते सभी, देते शुभ संदेश।।
चार वेद या लोक भी,स्वस्तिक में आसीन।
मध्य ब्रह्म का वास है, देता भाव नवीन।।
चार भुजाएँ एक सम,नब्बे अंश प्रमाण।
स्वस्तिक की रहती सदा,करती मानव-त्राण।
●शुभमस्तु !
08.05.2023●7.45 आ.मा.
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