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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आज भटकता बचपन देखा।
कैसा ये विधना का लेखा।।
रखे पीठ पर भारी बोरी।
जाता बालक करे न चोरी।।
तन पर फ़टे वसन वह धारे।
कैसे अपना भाग्य सँवारे!!
पढ़ने की वय बोझा ढोए।
कैसे नींद शांति की सोए??
कर एकत्र बोतलें खाली।
भर बोरी में पीछे डाली।।
बेच बोतलें पैसा पाए।
भूख उदर की तभी बुझाए।।
भूखे होंगे पितुवर जननी।
इसकी भी तो चिंता करनी।।
कैसे अपना भाग्य बनाए!
जब बचपन यों ही चुक जाए।
'शुभम्' न जीवन ऐसा देना।
पड़े नाव बचपन से खेना।।
जुड़ी कर्म से जीवन- रेखा।
किसने किसकी लिपि को देखा।।
●शुभमस्तु !
08.05.2023◆7.15 आ.मा.
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