211/2023
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● शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पहले ढोया उदर- कोख में,
काँधे पर वह अब ढोती है,
माँ की ममता।
उपालंभ देती न किसी को,
स्वयं कष्ट वह तन पर झेले।
अला-बला को दूर हटाए,
सिर पर सब अपने माँ ले ले।।
पीड़ा नहीं व्यक्त करती माँ,
किसकी समता!
झोली में नवजात लिटाए,
जाती है निर्द्वन्द्व अकेली।
खाली हाथ शाटिका तन पर,
नारी माँ कैसी अलबेली!!
पहुँची में कंगन कुछ चूड़ा,
अद्भुत फबता।
काँधे पर लाठी रख मोटी,
रज्जु ग्रथित है लंबी झोली।
चमकें दाँत श्वेत मोती - से,
लौंग नाक में पहने भोली।।
कानों में दो कुंडल उसके,
दृग में नमता।
माला गले अँगूठी अँगुली,
अरुण वर्ण की माथे बिंदी।
मंगलसूत्र सुशोभित ग्रीवा,
बोले गिटपिट टूटी हिंदी।।
माँ तो माँ है क्या जतलाएँ,
उर की शुभता!
●शुभमस्तु !
16.05.2023◆11.30आ०मा०
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