220/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सीख प्रीति की रीति,पंथ आसान नहीं।
अति दुरूह वह नीति,तुझे पहचान नहीं।।
भ्रमित वासना -भृंग,झूमते कली - कली,
माली होता दंग, ज्ञान का भान नहीं।
धर मीरा का रूप, रँगे चीवर तन के,
गिरा पतन के कूप, त्याग का ज्ञान नहीं।
बहे प्रीति की धार,नहीं गंतव्य मिला,
हुए वही बस पार, देह का ध्यान नहीं।
'लिव इन' का व्यापार,वासना अंधी है,
टूटे शीघ्र खुमार, प्रीति में जान नहीं।
सच्चा लौकिक प्रेम,कराता सृजन नया,
सद गृहस्थ का हेम,कृत्रिम चमकान नहीं।
प्रेम - पंथ - तलवार, दुधारी भयवाहक,
चलना अति दुश्वार, गिरे तो मान नहीं।
हो शीरीं - फरहाद, भले लैला- मजनू,
नेह राधिका-श्याम, सदृश उपमान नहीं।
'शुभम् ' गोपियाँ ग्वाल,कृष्ण के रँगराते,
सहजाकर्षण ताल,बजे व्यवधान नहीं।
●शुभमस्तु!
21.05.2023◆12.30 प०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें