रविवार, 28 मई 2023

गाँव, गाँव, गाँव, गाँव● [ बाल कविता ]

 228/2023


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●शब्दकार©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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गाँव, गाँव , गाँव, गाँव,

धूल   भरी    आँधियाँ।

झर्र - झाँय,झर्र - झाँय ,

गूँज     रहीं    वादियाँ।।


बाग, बाग,  बाग,  बाग,

रेत  का    झकोर     है।

डाल, डाल, डाल, डाल,

गिरा    ढेर    बौर    है।।


बेर ,   बेर,    बेर  ,  बेर,

बेर -  से    टिकोरे    हैं।

लूट,   लूट,   लूट,   लूट,

भाग     रहे    छोरे    हैं।।


कान, कान, कान, कान,

बात    यह    आई     है।

सत्रह   की    दीदी   को,

रुचती     खटाई      है ।।


लिए, लिए,  लिए,  लिए,

जेब के   टिकोर    छीन।

काट -छील, काट -छील,

दाँत   से   नन्हे    नवीन।।


●शुभमस्तु !


27.05.2023◆12.30प०मा०

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