रविवार, 21 मई 2023

चलाती सृष्टि वह नारी● [ नवगीत ]

 219/2023


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●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अकेलापन

नहीं भाता 

नियंता जो हमारा है।


अकेलापन 

विचारा तो

 बहुत ही कामना जागी।

एको$हं 

बहुस्यामक

बना वह ब्रह्म अनुरागी।।

बिना साथी

पुरुष को भी

कहाँ मिलता सहारा है?


बनाया नर

अकेला ही

उदासी से भरा खाली!

वामांग स्थित 

 पार्श्वस्थि से

सुघर वामा बना डाली।।


मिला फिर उस

नराकृति को

भला ये साथ प्यारा है।


बनी नारी

सगी साथी

चलाती सृष्टि वह प्यारी।

बने पूरक 

पुरुष -वामा

पुरुष पर नारियाँ भारी।।


सकारों के 

नकारों के

सृजन का रूप न्यारा है।


● शुभमस्तु !


21.05.2023◆9.15 आ०मा०

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