197/2023
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● शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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ज्येष्ठ मास के ताप से,मत घबराना मीत।
जो जितना तपता यहाँ,गाता वर्षा - गीत।।
अपना कोई ज्येष्ठ हो,मत करना अपमान।
नाक नहीं ऊँची उठे, सत्य तथ्य ले जान।।
ज्येष्ठ सदा ही मान्य है, पूजनीय संसार।
सम्मानित इनको करें,तज निज हृदय विकार
तपती धरती ज्येष्ठ में,बढ़ती प्यास अपार।
सागर में लहरें उठें, पावस का उपहार।।
ज्येष्ठा एक नक्षत्र है, उदित पूर्णिमा - सोम।
ज्येष्ठ मास होता वही, तपता रवि से व्योम।।
ज्येष्ठ देव श्रीविष्णु का,अतिप्रिय है शुभमास
पूजा हरि हनुमंत की,करिए गंगा वास।।
ज्येष्ठ मास शुभ भौम का,बुढ़वा मंगल नाम।
अर्चन कर बजरंग का,पूरे कर लें काम।।
वरुण सूर्य दो देव की, पूजा करना मीत।
ज्येष्ठ मास गंगा नहा, गाएँ हरि पद गीत।।
ज्येष्ठ सदा आगे चलें,पीछे सभी कनिष्ठ।
नायक प्रभु की सृष्टि में,होता सदा वरिष्ठ।।
आदि ज्येष्ठ का रूप है,सदा सृष्टि में मीत।
आगे वह पीछे सभी, होना क्यों विपरीत!!
●शुभमस्तु !
10.05.2023◆11.30 आ.मा.
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