207/2023
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● शब्दकार©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सकल राष्ट्र में भरें उजास।
नहीं करें इसका उपहास।।
खाते-पीते नित्य अन्न -जल,
करते भी हैं जिसमें वास।
ढोर नहीं बन मानव देह,
चरते नहीं घूर पर घास।
कर विश्वास सपोलों का मत,
बने पड़ौसी रहते पास।
गंगा यमुना का निर्मल जल,
पीकर लेता है तू श्वास।
संतति उऋण नहीं मातु से,
उसको भी कुछ सुत से आस।
'शुभम्'सदा कर्तव्य-पंथ चल,
मात्र नहीं खोना रँग- रास।
●शुभमस्तु !
15.05.2023◆6.15आ०मा०
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